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रत्न और पत्थर- :

जीवन मे आने वाली परेशानियों को कोई बदल नही सकता परंतु हम उसके प्रभाव को अवश्य कम कर सकते हैं, अतः कुंडली का महत्व बहुत ही ज्यादा होता है मानव जीवन मे, कुंडली को हमेशा ही अच्छे ज्योतिष के परामर्श से बनवाना चाहिए, और न केवल जन्म के समय परंतु किसी भी सुभ कार्य के पहले कुंडली देखना महत्वपूर्ण तथा लाभदायक होता है। शादी के पहले भी बहुत लोग कुंडली देखते है ताकि शादी के उपरांत आने वाली परेशानियों को टाला जा सके।

ज्योतिष में रत्नों का महत्व-

रत्न हमेशा से पूरी दुनिया में कीमती चीज माने जाते रहे हैं, जिनके मूल्य उनकी गुणवत्ता और दुर्लभता आदि के आधार पर तय होते हैं। रत्न तीन प्रकार के होते है- एक तो वे हैं, जो खदानों में पाए जाते है, जिनका निर्माण भूगर्भ में होने वाली विभिन्न प्रकार की रासायनिक क्रियाओं से धातुओं के संयोग होता है। दूसरे जैविक रत्न भी होते हैं, जिन्हें समुद्रों हासिल किया जाता है। इनके अलावा वानस्पतिक रत्न भी होते हैं। तमाम लोग शौक में रत्न धारण करते हैं, लेकिन ज्योतिष में इसका इस्तेमाल समस्याओं के समाधान या इलाज के रूप में किया जाता है, क्योंकि हर रत्न की अपना प्रभाव और विशेषता होती है। सिर्फ सुनी-सुनाई बातों या अधूरी जानकारी के आधार पर रत्न नहीं पहनना चाहिए। ज्योतिषाचार्य की सलाह पर ही इसे धारण करने से लाभ मिलता है, वरना नुकसान की भी पूरी संभावना बनी रहती है। ज्योतिषी किसी व्यक्ति के लग्न कुंडली, नवमांश, ग्रहों, दशा-महादशा का अध्ययन करने के बाद ही बताते हैं कि उसे कौन सा रत्न किसी अवधि में धारण करना है?साथ ही वे इसे पहनने की विधि भी बताते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों को मजबूत करने और कमजोर ग्रहों के शुभ प्रभाव को पाने के लिए रत्नों के इस्तेमाल की सलाह दी जाती है। प्राचीन ग्रंथों में 84 प्रकार के रत्नों का जिक्र है, लेकिन 9 रत्नों का विशेष महत्व है और यह सभी नौ ग्रहों से संबंधित हैं। बाकी भी कई सारे रत्न भी बाजार में मौजूद हैं, जिनका लोग इस्तेमाल कर रहे हैं। अब सवाल उठता है यह 9 रत्न हैं कौन से और इनकी क्या विशेषताएं है? विभिन्न रत्नों के बारे संक्षिप्त जानकारी नीचे दी गई है-

हीरा-

यह सबसे सुंदर और बेशकीमती रत्न है। इसकी चमक हमेशा से लोगों को आकर्षित करती रही है। पुराने जमाने में राजा-महाराजा इसे अपने मुकुट व सिंहासन में भी जड़वाया करते थे। ज्योतिष में इसे शुक्र का रत्न बताया गया है, जिसे चांदी यह प्लेटिनम धातु की अंगूठी में पहना जाता है। इसे धारण करने से सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य मिलता है, लेकिन इसे हर कोई नहीं पहन सकता है। ज्योतिषाचार्य जातक की कुंडली व ग्रहों की दशा आदि का अध्ययन करने के बाद इसे पहनने सलाह देते हैं। हीरे की ज्यादातर खदानें दक्षिण अफ्रीका में हैं। साथ ही यह कनाडा, भारत, रूस, ब्राजील व आस्ट्रेलिया में भी पाया जाता है। भारत में मध्य प्रदेश के पन्ना जिले भी हीरा मिलता है, जबकि इसके कारोबार का बड़ा केंद्र गुजरात का सूरत शहर है। वर्तमान मे अमेरिकन सफेद डायमंड जैसे हीरे के विकल्प भी बाजार में उपलब्ध हैं।

माणिक-

यह सूर्य का रत्न माना जाता है, जिसे अंग्रेजी में रूबी कहते हैं। ज्योतिषाचार्य सूर्य संबंधी समस्याओं के निराकरण के लिए इसे पहनने की सलाह देते हैं। बेहतरीन किस्म का माणिक हिमालय की चट्टानों और दक्षिण भारत में भी पाया जाता है।माणिक को अगर प्रातःकाल सूर्य के सामने रखें तो उसके चारों ओर लाल रंग की किरणें बिखरने लगती है। विभिन्न जगहों पर पाया जाने वाला माणिक लाल,गुलाबी, रक्तवर्णी, हल्का गुलाबी आदि रंगों का होता है।

गोमेद-

इस रत्न का इस्तेमाल राहु के लिए किया जाता है। यह ज्यादातर म्यांमार व श्रीलंका की खदानों में मिलता है। म्यांमार के गोमेद में भूरापन होता है, जो गोमूत्र के वर्ण के समान होता है। ऐसा गोमेद श्रेष्ठ का माना जाता है। श्रीलंका में पाए जाने वाले गोमेद का रंग कत्थई होता है। आमतौर पर सामान्य दशाओं में लोग इसे धारण नहीं करते हैं। इसे भी ज्योतिषाचार्य की सलाह पर ही धारण करना चाहिए, क्योंकि वे ही बता सकते हैं किस आकार का गोमेद कब और कैसे पहनना है?

पुखराज-

यह बृहस्पति का रत्न माना जाता है। इसे धारण करने से आध्यात्मिक शक्ति और ज्ञान में वृद्धि होती है। इस रत्न को भी धारण करने में ज्योतिषीय सलाह जरूरी है। पुखराज का रंग पीले पर होता है।यह बर्मा, जापान, ब्राज़ील, मेक्सिको, रूस व श्रीलंका आदि जैसे अनेक देशों में पाया जाता है। बर्मा में पाए जाने वाले पुखराज को सबसे अच्छा माना जाता है।

नीलम-

यह शनि का रत्न है, जिसे लेकर तमाम तरह की कहानियां बताई जाती है। यह भी कहा जाता है कि इसका असर सबसे जल्दी नजर आता है। किसी व्यक्ति ने इसे पहना और उसे सूट नहीं किया तो वह भारी मुसीबत में पड़ सकता है। नीलम के लिए तो ज्योतिषियों की सलाह बेहद आवश्यक होती है। बेहतरीन किस्म का नीलम जम्मू- कश्मीर की खदानों का माना जाता है,लेकिन यह बेहद दुर्लभ है। भारत में ही ओडिशा के गंजाम जिले में गोदावरी व महानदी के बीच की घाटी में भी यह पाया जाता है। श्रीलंका में पाया जाने वाला नीलम भी उत्तम कोटि का होता है। इसके अलावा यह हिमालय पर्वत, थाईलैंड, बर्मा, आस्ट्रेलिया व जावा समेत विश्व के कुछ अन्य देशों मिलता है।

पन्ना-

पन्ना को बुध का रत्न बताया गया है, जो मन और मस्तिष्क को मजबूत करता है। संस्कृत में इसे मरकत मणि, फारसी में जमरन, हिन्दी में पन्ना और अंग्रेजी में एमराल्ड स्टोन कहते हैं। यह गहरे से हल्के हरे रंग का होता है, जो दुनिया के कई देशों मिलता है, लेकिन कोलंबिया का पन्ना सबसे अच्छा माना जाता है। भारत में यह दक्षिण महानदी, हिमालय, गिरनार और सोन नदी के पास भी पाया जाता है।

मूंगा-

इसका संबंध मंगल से बताया गया है। मोती की तरह यह भी समुद्र में मिलता है। अच्छे किस्म के मूंगा भूमध्य सागर के तटवर्ती क्षेत्र अल्जीरिया, ईरान की खाड़ी व स्पेन के समुद्री तट पर पाया जाता है। लोग ज्यादातर लाल और नारंगी रंग के मुंगे का इस्तेमाल करते हैं। आमतौर पर मंगल दोष होने पर मूंगा पहनने की सलाह दी जाती है, लेकिन कुछ राशियों को इसका इस्तेमाल नुकसानदायक होता है, इसलिए इसके भी इस्तेमाल से पहले ज्योतिषी की सलाह जरूरी है।

मोती-

इसका संबंध चंद्रमा से है। यह एक जैविक संरचना है, लेकिन इसे रत्न माना जाता है। कहा जाता है कि इसे धारण करने से माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। आचार्य वराहमिहिर ने भी अपने ग्रंथ‘बृहतसंहिता’ के ‘मुक्ता लक्षणाध्याय’ में मोतियों का विस्तृत विवरण दिया है। ज्योतिषाचार्य कुछ खास राशि के लोगों को मोती पहनने की सलाह देते हैं। इसे धारण करने से उलझन नहीं होती है, मन शांत रहता है और विचारों में सकारात्मकता आती है, लेकिन कुछ रत्न ऐसे हैं, जिनके साथ मोती को नहीं पहनना चाहिए। ऐसा करने पर नुकसान संभावित है। विश्व में कई जगहों पर मोती मिलता है। बंगाल की खाड़ी में पाया जाने वाला मोती हल्के गुलाबी रंग का होता है, जबकि मेक्सिको की खाड़ी का मोती बिल्कुल सफेद। इसी तरह ऑस्ट्रेलिया के समुद्री क्षेत्र से प्राप्त होने वाला मोती सफेद तथा कठोर होता है। साथ ही कैलिफोर्निया व कैरेबियन द्वीप समूह के समुद्री क्षेत्रों और लाल सागर में भी मोती पाया जाता है। वर्तमान में मोती का उत्पादन भी हो रहा है या यूँ कहें की मोती की खेती की जा रही है। बताया जाता है कि इसकी शुरुआत चीन से हुई थी। भारत में तमाम लोग तालाबों और अपने घरों में इसका उत्पादन कर रहे हैं। प्राकृतिक रूप से मोती का निर्माण तब होता है जब रेत, कीट आदि किसी सीप अंदर पहुंच जाते हैं। फिर उसके ऊपर चमकदार परतें चढ़ती है। यह परतमुख्यत: कैल्शियम की होती है। मोती की खेती भी इसी तरीके से होती है।

लहसुनिया-

यह केतु का रत्न माना जाता है। संस्कृत में इसे वैदुर्य, विदुर रत्न, बाल सूर्य, उर्दू-फारसी में लहसुनिया और अंग्रेजी में कैट्स आई कहते हैं। कहते हैं कि इस रत्न के धारण करने से केतु के दुष्प्रभाव खत्म हो जाते हैं। इस रत्न के ऊपर आमतौर पर 2 से 4 धारियां होती हैं, लेकिन जिस पर ढाई धारी होती है वह अच्छा माना जाता है। खासतौर पर म्यांमार का लहसुनिया सबसे अच्छा माना जाता है। यह भारत, श्रीलंका, अफगानिस्तान व ब्राजील आदि देशों में पाया जाता है। भारत में लहसुनिया विंध्याचल, हिमालय और महानदी क्षेत्रों में मिलता है। इसे भी धारण करने से पूर्व ज्योतिषीय सलाह लेना आवश्यक है।